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अ॒ग्निर्होता॑ क॒विक्र॑तुः स॒त्यश्चि॒त्रश्र॑वस्तमः। दे॒वो दे॒वेभि॒रा ग॑मत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnir hotā kavikratuḥ satyaś citraśravastamaḥ | devo devebhir ā gamat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निः। होता॑। क॒विऽक्र॑तुः। स॒त्यः। चि॒त्रश्र॑वःऽतमः। दे॒वः। दे॒वेभिः॑। आ। ग॒म॒त् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:1» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:1» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी परमेश्वर और भौतिक अग्नि किस प्रकार के हैं, सो अगले मन्त्र में उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सत्यः) अविनाशी (देवः) आप से आप प्रकाशमान (कविक्रतुः) सर्वज्ञ है, जिसने परमाणु आदि पदार्थ और उनके उत्तम-उत्तम गुण रचके दिखलाये हैं, जो सब विद्यायुक्त वेद का उपदेश करता है, और जिससे परमाणु आदि पदार्थों करके सृष्टि के उत्तम पदार्थों का दर्शन होता है, वही कवि अर्थात् सर्वज्ञ ईश्वर है। तथा भौतिक अग्नि भी स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों से कलायुक्त होकर देशदेशान्तर में गमन करानेवाला दिखलाया है। (चित्रश्रवस्तमः) जिसका अति आश्चर्यरूपी श्रवण है, वह परमेश्वर (देवेभिः) विद्वानों के साथ समागम करने से (आगमत्) प्राप्त होता है। तथा जो (सत्यः) श्रेष्ठ विद्वानों का हित अर्थात् उनके लिये सुखरूप (देवः) उत्तम गुणों का प्रकाश करनेवाला (कविक्रतुः) सब जगत् को जानने और रचनेहारा परमात्मा और जो भौतिक अग्नि सब पृथिवी आदि पदार्थों के साथ व्यापक और शिल्पविद्या का मुख्य हेतु (चित्रश्रवस्तमः) जिसको अद्भुत अर्थात् अति आश्चर्य्यरूप सुनते हैं, वह दिव्य गुणों के साथ (आगमत्) जाना जाता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। सब का आधार, सर्वज्ञ, सब का रचनेवाला, विनाशरहित, अनन्त शक्तिमान् और सब का प्रकाशक आदि गुण हेतुओं के पाये जाने से अग्नि शब्द करके परमेश्वर, और आकर्षणादि गुणों से मूर्त्तिमान् पदार्थों का धारण करनेहारादि गुणों के होने से भौतिक अग्नि का भी ग्रहण होता है। सिवाय इसके मनुष्यों को यह भी जानना उचित है कि विद्वानों के समागम और संसारी पदार्थों को उनके गुणसहित विचारने से परम दयालु परमेश्वर अनन्त सुखदाता और भौतिक अग्नि शिल्पविद्या का सिद्ध करनेवाला होता है। सायणाचार्य्य ने गमत् इस प्रयोग को लोट् लकार का माना है, सो यह उनका व्याख्यान अशुद्ध है, क्योंकि इस प्रयोग में (छन्दसि लुङ्०) यह सामान्यकाल बतानेवाला सूत्र वर्त्तमान है ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशौ स्त इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

यः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः कविक्रतुः होता देवोऽग्निः परमेश्वरो भौतिकश्चास्ति, स देवेभिः सहागमत् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) परमेश्वरो भौतिको वा (होता) दाता ग्रहीता द्योतको वा (कविक्रतुः) कविः सर्वज्ञः क्रान्तदर्शनो वा। करोति यो येन वा स क्रतुः, कविश्चासौ क्रतुश्च सः। कविः क्रान्तदर्शनो भवति कवतेर्वा। (निरु०१२.१३) यः सर्वविद्यायुक्तं वेदशास्त्रं कवते उपदिशति स कविरीश्वरः। क्रान्तं दर्शनं यस्मात्स सर्वज्ञो भौतिको वा क्रान्तदर्शनः। कृञः कतुः (उणा०१.७६) अनेन कृञो हेतुकर्त्तरि कर्त्तरि वा कतुः प्रत्ययः। (सत्यः) सन्तीति सन्तः, सद्भ्यो हितः तत्र साधुर्वा। सत्यं कस्मात्सत्सु तायते सत्प्रभवं भवतीति वा। (निरु०३.१३) (चित्रश्रवस्तमः) चित्रमद्भुतं श्रवः श्रवणं यस्य सोऽतिशयितः (देवः) स्वप्रकाशः प्रकाशकरो वा (देवेभिः) विद्वद्भिर्दिव्यगुणैः सह वा (आ) समन्तात् (गमत्) गच्छतु प्राप्तो भवति वा। लुङ्प्रयोगोऽडभावश्च ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। अग्निशब्देन परमेश्वरस्य सर्वाधारसर्वज्ञसर्वरचकविनाशरहितानन्तशक्तिमत्त्वादिगुणैः सर्वप्रकाशकत्वात्, तथा भौतिकस्याकर्षणगुणादिभिर्मूर्त्तद्रव्याधारकत्वाच्च ग्रहणमस्तीति। सायणाचार्य्येण गमदिति लोडन्तं व्याख्यातम्, तदेतदस्य भ्रान्तिमूलमेव। कुतः? गमदित्यत्र ‘छन्दसि लुङ्लङ्लिटः’ इति सामान्यकालविधायकस्य सूत्रस्य विद्यमानत्वात् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. सर्वाधार सर्वज्ञ, सर्वांचा निर्माता, अविनाशी, अनंत शक्तिमान व सर्वप्रकाशक इत्यादी गुणांनी अग्नी शब्दाचा अर्थ परमेश्वर व आकर्षण इत्यादी गुणांनी मूर्तिमान पदार्थांना धारण करणारा इत्यादी गुण असल्यामुळे भौतिक अग्नी असाही अर्थ ग्रहण केला जातो. याशिवाय माणसांनी विद्वानांचा संग व जगातील पदार्थ यांना त्यांच्या गुणासहित जाणले पाहिजे. परमदयाळू परमेश्वर अनंत सुख देणारा व भौतिक अग्नी शिल्पविद्या सिद्ध करणारा असतो.
टिप्पणी: सायणाचार्याने ‘गमत्’ या प्रयोगाला लोट् लकाराचे मानले आहे. ती त्यांची व्याख्या अशुद्ध आहे. कारण या प्रयोगात (छन्दसि लुङ्. ) हे सामान्यकाल दर्शविणारे सूत्र आहे. ॥ ५ ॥